तबला की उत्पत्ति (उगम) Origin of Tabla
तबले की उत्पत्ति को लेकर कई विद्वानों और बुजुर्गों ने काफी शोध किया है। परंतु तबले की उत्पत्ति के संबंध में आज तक कोई निश्चित विश्वसनीय एवं ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है। पंडित अरविंद मुलगांवकर, डॉ. आबान मिस्त्री जैसे कई महान विचारकों ने इस संबंध में काफी मूल्यवान शोध किए हैं और तबले के निर्माण के संबंध में अपनी पुस्तकों में कई संभावनाएं या विचार धाराएं व्यक्त की हैं। हालाँकि, तबले के वंश और इसकी उत्पत्ति की सही अवधि के बारे में कोई जानकारी नहीं है। तबले के निर्माण के संबंध में "टूटा तब भी बोला" जैसी दिलचस्प गैर-तर्कसंगत कहानियाँ भी हैं। विद्वानों ने इस बात का प्रमाण दिया है कि तबला वाद्ययंत्र विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों से होता हुआ भारत आया और भारत में तबला या तबला जैसे वाद्ययंत्रों का अस्तित्व बहुत प्राचीन काल से है। अत: तबले के निर्माण का श्रेय किसे दिया जाए तथा इसकी अवधि का निर्धारण कैसे किया जाए, ये दो गहन प्रश्न अभी भी सामने हैं।
तबले की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न विचारकों ने अलग-अलग विचार इस प्रकार व्यक्त किये हैं:
1) कुछ लोगों के अनुसार तबले की उत्पत्ति 1210 के आसपास होने का अनुमान है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि सत्रहवीं शताब्दी तक लिखे गए ग्रंथों में तबले का कोई उल्लेख नहीं है।
2) कुछ लोगों का मानना है कि अमीर खुसरो ने तबला बनाया, लेकिन पंडित अरविंद मुलगांवकर की किताब में उल्लेख है कि केवल नामों की समानता के कारण तबले का श्रेय खुसरोखा के बजाय अमीर खुसरो को दिया गया।
3) डॉ. अबान मिस्त्री ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि कार्ला (लोनावला, महाराष्ट्र) की एक प्राचीन गुफा मूर्तिकला में एक महिला को तबला जैसा दो भागों वाला वाद्ययंत्र बजाते हुए दिखाया गया है।
4)तबला मेसोपोटामिया, सीरियन,अरेबियन इन तीन संस्कृतियों मैं से मुगलों के माध्यम से क्रमिक रूप से अवतरित होकर भारत आया होगा।
5)अमीर ख़ुसरा के जन्म से पहले सैकड़ों वर्षों तक तबला भारत में था और तबला एक भारतीय वाद्ययंत्र होने का संदेह है |
6) कुछ लोगों के अनुसार, तबला त्रिपुष्कर वाद्ययंत्र के दो भागों ऊर्ध्वक और आलिंग्य से बना होगा।
7) महाराष्ट्रीयन संबल की बनावट तबले के समान होती है, इसलिए कुछ लोगों का मानना है कि तबला संबल का एक संशोधित संस्करण है।
8)कुछ लोग अनुमान लगाते हैं कि पंजाब प्रांत में पहले पाया जाने वाला वाद्ययंत्र "दुक्कड़" ही आज के तबले का जनक है।
9)संगीत तबला अंक के एक लेख में श्रीमती योगमाया शुक्ला ने विभिन्न युगों में लिखे गए विभिन्न ग्रंथों में तबले का उल्लेख होने का प्रमाण इस प्रकार दिया है:
अ) जैन आचार्य सुधाकलश 'वचनाचार्य' ने 1350 में लिखी पुस्तक 'संगीतोपनिष्टसरोद्वार' में तबले का उल्लेख इस प्रकार किया है -
तथैव म्लेंच्छवाद्यानी ढोल तब्लमुखानि तू | डफा च टामकी चैंव डउंडी पादचारिनाम ||
अर्थात ढोल, तबला, डफ, दावंडी सभी म्लैच्छ (मुस्लिम) वाद्य यंत्र थे |
ब) आसाम के वैष्णव संत माधव कंदली द्वारा लिखित आसामिय में रामायण में भी तबले का उल्लेख कुछ इस प्रकार है।
"बीरढाक ढोल बाजिया तबर डगर सबद सुनिया |"
क) पंद्रहवीं शताब्दी में सिखों के प्रमुख गुरु, गुरुनानक देव ने एक श्लोक में तबला वाद्य का उल्लेख इस प्रकार किया है।
"तबला बाज बीचार सबदि सुणाइया |"
10) संगीत तबला अंक पुस्तक के एक अन्य लेख में, डॉ. अबानी स्त्री ने बादामी की छठी शताब्दी की एक मूर्ति का उल्लेख किया है जिसमें एक व्यक्ति तबला जैसा वाद्य यंत्र बजाता है।
उपरोक्त सभी सन्दर्भों को देखने से पता चलता है कि तबला या तबला जैसे वाद्ययंत्रों का उल्लेख अलग-अलग कालखंडों में अलग-अलग स्थानों पर मिलता है। साथ ही, इन सभी विचार धाराओं में बहुत बड़ा अंतर है, इन सभी विचार धाराओं से हम दो तर्क निकाल सकते हैं कि 1)तबला मूल रूप से मुस्लिम राष्ट्र का एक संगीत वाद्ययंत्र है और विभिन्न स्थानों की यात्रा के बाद यह भारत में आया| 2)प्राचीन भारत के विभिन्न स्थानों के विभिन्न वाद्ययंत्र जो तबले के समान थे, आज के तबले के जनक हैं, अत: तबला पूर्णतः भारतीय वाद्ययंत्र है।
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