चैती गायन शैली - Chaiti Gayan Shaili

चैती गायन शैली

चैती गायन- चैती भारतीय संस्कृति के अनुसार होलिका पर्व के पश्चात् चैत माह का आरम्भ होता है । चैती उत्तर प्रदेश में चैत के महीने में गाया जाने वाला लोकगीत है । चैती के अर्द्ध – शास्त्रीय गीत विधाओं में भी सम्मिलित किया जाता है । चैत्र के महीने में गाए जाने वाले इस राग का विषय प्रेम प्रकृति और होली रहते हैं ।

कजरी या कजली भी उत्तर प्रदेश का लोकगीत है ।

चैत्र के महीने में राम का जन्म होने के कारण इस गीत की हर पंक्ति के बाद अकसर रामा शब्द लगाया जाता है । संगीत के आयोजनों में अधिकतर चैती , टप्पा और दादरा ही गाए जाते हैं । यह राग अकसर राग बसन्त या मिश्र बसन्त में निबद्ध होते हैं ।
उत्तर प्रदेश मुख्यतया वाराणसी में चैती , ठुमरी , दादरा गाए जाते हैं । जहाँ चैती उत्सव को प्रमुखतया देखा जा सकता है । बारह मासे में चैत का महीना गीत संगीत के मास के रूप में चित्रित किया गया है ।

चैत शैली के राग
चैती गायन में कुछ राग विशेष के स्वरों का मिश्रण इन गीतों की धुनों में प्रयुक्त होता है तथा विविध आयामों द्वारा इनमें सौन्दर्य का संचार किया जाता है । अधिकांशतः ये धुनें काफी , राग पहाड़ी , पीलू आदि रागों पर आधारित होती हैं । • इसलिए इनकी गणना उपशास्त्रीय संगीत के अन्तर्गत की जा सकती है । इस विधा का निर्वहन दीपचन्द , अद्धा , तिताला एवं कहरवा तालों में बहुतायत से होता है ।

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