दादरा गायन शैली - Dadara Gayan shaili
दादरा गायन शैली
दादरा वस्तुतः ठुमरी शैली का गायन है । दादरा गीत शृंगार रस प्रधान गीत है इसकी प्रकृति ठुमरी के समान प्रतीत होती है । इसी कारण दादरा गायन शैली को अधिकतर ठुमरी अंग के रागों में गाया जाता है । दादरा ठुमरी की अपेक्षा हल होती है । प्रायः यह देखा गया है कि ठुमरी गाने वाले गायक – गायिकाएँ दादरा गाते हैं । इसमें जन – मन – रंजन करने की पर्याप्त शक्ति होती है ।
दादरा पूर्व उत्तर प्रदेश की विशेष गायन शैली है । यहाँ के गायक दादरा गायन निपुण होते हैं । दादरा भाषा पूर्वी हिन्दी की किसी – न – किसी बोली के अनुरूप होती है । पहले इस गायन को कोठे पर ही गाया जाता था अब इस गायन शैली को प्रतिष्ठित गायक भी गाते हैं ।
दादरा शैली में अन्य गायन शैली की तरह ही स्थायी व अन्तराल दो भाग होते हैं ।
दादरा के राग
दादरा प्रायः काफी , पहाड़ी, खमाज , माण्ड आदि रागों में गाए जाते हैं । दादरा गायन में राग की शुद्धता पर विशेष ध्यान न देकर रंजकता पर ही ध्यान केन्द्रित किया जाता है । दादरा में भावात्मक गीत तत्त्व , ताल , राग आदि होता है । दादरा और ठुमरी में भी इन रागों का प्रयोग होता है ।
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