धमार गायन शैली - Dhamar Gayan

धमार गायन शैली

धमार – जिसमें होरी की धूमधाम के साथ गीत का गायन होता है , वह धमार गीत कहलाता है । यह ध्रुपद शैली से गाया जाने वाला एक गीत है । चौदह मात्राओं की धमार ताल के निबद्ध गीत में अधिकांशत : होरी सम्बन्धी पदों की रचना होती है । राधा और कृष्ण इस गीत के नायक होते हैं । इसका जन्म स्थान ब्रज को माना जाता है । फाग से सम्बन्धित होने के कारण इसे ‘ पक्की होरी ‘ भी कहते हैं ।

धमार गीत की व्युत्पत्ति
धमार गीत की व्युत्पत्ति यह गायकी एक रंगारंग परम्परा की गायन शैली है , इसी कारण ‘ धमार ‘ को धमाल – धमार ’ और ‘ घमारी ’ के नाम से भी बुलाया जाता है । धमाल का अभिप्राय ही धमा – चौकड़ी करना है । धमार शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की ‘ धम् ‘ धातु से हुई ‘ धम् ’ धातु में अच् प्रत्यय लगने पर ‘ धमार ‘ शब्द बनता है । धमार का उद्देश्य गम्भीरता से हटकर रंगीन वातावरण उत्पन्न करना है , इसलिए इसकी शैली लय प्रधान है । धमार गीत एक सामूहिक गीत है , जो टोलियों में गाया जाता है । मूल रूप से धमार गीत होली सम्बन्धी गीत है । यह शृंगार रस से परिपूर्ण गायकी है । इसकी शैली लय प्रधान है , जिसके स्थायी व अन्तरा दो भाग होते हैं । धमार गीत, ध्रुपद तथा ख्याल बीच वाली स्थिति के निदर्शक हैं । धमार का मूल धम्माली प्रबन्ध में है , जिसका सबसे पहले उल्लेख ‘ संगीत शिरोमणि ‘ में किया गया है । 

धमार गीतों की परम्परा
धमार गीतों की परम्परा सदारंग और अदारंग के बाद आगे बढ़ी है । सदारंग के पुत्र मनरंग ने जयपुर दरबार का आश्रय लिया और उन्होंने अनेक धमारों की रचना की । इसी प्रकार मनरंग ने भी पारम्परिक धमारों की रचना की । सबरंग ने भी धमार गीतों की रचना की । निःसन्देह धमार गीत भी शास्त्रीय परम्पराओं के प्रमुख गीत रहे हैं ।

सादरा भारतीय उपमहाद्वीप के हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक मुखर शैली है । भीतर ( ताल ) , तेवरा ( 7 बीट्स ) , सोवोल ( 10 बीट्स ) और ( 12 बीट्स ) या 10 बीट झपताल की रचना को सादरा कहा जाता है ।

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